Golden Forest गोल्डन फारेस्ट की 1484 करोड़ रुपये की हजारों बीघा भूमि/संपत्ति की नीलामी की तरफ सुप्रीम कोर्ट ने एक और कदम बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश पर आयकर विभाग ने गोल्डन फारेस्ट की देहरादून जिले में स्थित भूमि का भी मूल्यांकन कराया था। नीलामी की तरफ सुप्रीम कोर्ट के निरंतर आगे बढ़ने के बाद भूमाफिया और अफसरों में खलबली की स्थिति है।
अब ताजा सुनवाई में कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि तीन पार्टियों ने नीलामी में दिलचस्पी दिखाई है। लिहाजा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने उत्तराखंड सरकार को गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।
नीलामी की तरफ सुप्रीम कोर्ट के निरंतर आगे बढ़ने के बाद भूमाफिया और अफसरों में खलबली की स्थिति है। क्योंकि, गोल्डन फारेस्ट के जिस अध्याय को अब तक समाप्त माना जा रहा था, उसकी उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है।
साथ ही उन अधिकारियों की मुश्किल भी बढ़ सकती है, जिन्होंने गोल्डन फारेस्ट की भूमि को खुर्दबुर्द होने दिया। सुप्रीम कोर्ट इसलिए भी गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों की नीलामी की दिशा में कार्रवाई तेज कर रहा है, ताकि जिन व्यक्तियों ने गोल्डन फारेस्ट की कंपनियों में पैसा लगाया है, उन्हें उनकी धनराशि वापस दिलाई जा सके।
इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के ही आदेश पर आयकर विभाग ने गोल्डन फारेस्ट की देहरादून जिले में स्थित भूमि का भी मूल्यांकन कराया था। जिसमें आयकर विभाग ने संपत्ति का मूल्य 1,484 करोड़ रुपये से अधिक आका है। यह रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जा चुकी है। पिछली सुनवाई में इस रिपोर्ट पर स्थिति स्पष्ट की जा चुकी है, जबकि अब यह बात सामने आई है कि उत्तराखंड समेत विभिन्न राज्यों में स्थित गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों की नीलामी में तीन पार्टियों ने दिलचस्पी दिखाई है। हालांकि, अन्य पार्टियों के लिए भी रास्ता खुला रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों की नीलामी जहां जैसा है, के आधार पर की जाएगी। इसका आशय यह हुआ कि संपत्ति की जो भी स्थिति होगी, उसे उसी रूप में बोली में शामिल किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई भूमि किसी मुकदमेबाजी के अधीन है, तो बोली उसी जोखिम के साथ कराई जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गोल्डन फारेस्ट की संपत्तियों में आगे और जटिलता न आए, इसके लिए संपत्तियों पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी किए हैं। ऐसे में जिन संपत्तियों (454 हेक्टेयर) को सरप्लस मानकर राज्य सरकार में निहित किया गया है, वहां भी यथास्थिति लागू हो जाएगी। गंभीर यह है कि ऐसी तमाम भूमि को पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सरकार विभिन्न विभागों को आवंटित भी कर चुकी है।
गोल्डन फारेस्ट की मिसरास पट्टी में बड़े पैमाने पर भूमि है। हालांकि, अधिकारियों की अनदेखी के चलते भूमाफिया बड़े पैमाने पर इसकी खरीद कर रहे हैं। यही स्थिति मसूरी, धनोल्टी और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के पास की संपत्तियों का भी है। वहीं, अधिकतर भूमि की खरीद फरोख्त विकासनगर तहसील क्षेत्र में की जा रही है। सवाल यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट रुख के बाद शासन और प्रशासन के अधिकारी इन संपत्तियों पर कब्जे कैसे दिला पाएंगे।