भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में 2036 ओलंपिक मेजबानी की बात कही है. भारत ने अब तक एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स की ही मेजबानी की है. आइए समझते हैं कि ओलंपिक की मेजबानी हासिल करने की प्रक्रिया क्या होती है और भारत का दावा कितना मजबूत नजर आ रहा है.
इस पूरी कहानी को सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं. सबसे पहले तो यही समझना जरूरी है कि तमाम बड़े प्रोजेक्ट्स को 4-5 साल में खत्म करने वाली सरकार ओलंपिक की मेजबानी के लिए अभी और 12 साल का इंतजार क्यों कर रही है? इसकी वजह जान लेते हैं-ओलंपिक खेलों का आयोजन हर 4 साल के बाद होता है. इस साल 2024 ओलंपिक का आयोजन पेरिस में किया जाएगा, जिसकी तैयारियां इन दिनों जोर-शोर से चल रही हैं. लेकिन ओलंपिक तो 2028 में भी होंगे, फिर 2032 में भी होंगे तो मेजबानी के लिए 2036 का इंतजार क्यों? इस सवाल का जवाब भी बहुत सीधा है. खेलों की दुनिया में दिलचस्पी रखने वालों को पता भी होगा. ओलंपिक की मेजबानी का फैसला कई साल पहले हो जाया करता है. उदाहरण के लिए 2024 पेरिस ओलंपिक के बाद 2028 का ओलंपिक अमेरिका के शहर लॉस एंजेलिस में और 2032 का ऑस्ट्रेलियाई शहर ब्रिसबेन में होगा. यानी अब 2036 ही सबसे करीबी साल है जब ओलंपिक की मेजबानी का दावा किया जा सकता है.
2032 ओलंपिक की मेजबानी ब्रिसबेन को करनी है इसका फैसला भी आज से करीब तीन साल पहले 2021 में ही हो गया था. मुमकिन है कि आपके मन में ये सवाल भी आए कि आखिर ओलंपिक मेजबानी का फैसला इतने ‘एडवांस’ में क्यों होता है. इसकी वजह जानने के लिए आपको वो प्रक्रिया जाननी होगी जिसके आधार पर ओलंपिक की मेजबानी का फैसला होता है. इससे पहले आपको बस इतना याद दिला दें कि भारत ने 2010 में कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी की थी. इससे पहले भारत में 1951 और 1982 में एशियन गेम्स का आयोजन किया जा चुका है. हॉकी, बैडमिंटन, शूटिंग जैसे तमाम खेलों की वर्ल्ड चैंपियनशिप भारत में होती रहती हैं. कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के बाद निश्चित तौर पर बड़े आयोजन का तजुर्बा भी बढ़ा है.