मुंबई के लालबागचा राजा का पहला लुक गणेश चतुर्थी से पहले भक्तों के सामने आया। 1934 से शुरू हुई परंपरा को कंबली परिवार अब भी निभा रहा है। इस बार पर्यावरण अनुकूल कागज की गणेश प्रतिमाएं भी चर्चा में हैं। रेलवे ने 392 विशेष ट्रेनें चलाने की घोषणा की है।

मुंबई के मशहूर लालबागचा राजा का पहला लुक रविवार शाम को भक्तों के सामने आया। हर साल की तरह इस बार भी लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बने इस गणेश प्रतिमा का अनावरण गणेश चतुर्थी से कुछ दिन पहले ही किया गया। लालबागचा राजा केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि मुंबई की सामूहिक आस्था, कला और उत्सवधर्मिता का प्रतीक माना जाता है।लालबागचा राजा की शुरुआत साल 1934 में हुई थी, जब पुतलाबाई चाल में लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना की गई। तब से यह प्रतिमा पूरे महाराष्ट्र और देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी है। इस गणपति की मूर्ति का निर्माण और देखभाल पिछले आठ दशकों से कंबली परिवार करता आ रहा है। गणेश चतुर्थी इस साल 27 अगस्त से शुरू होगी और 10 दिनों तक चलेगी। इस दौरान भक्त बड़े उत्साह से लालबागचा राजा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।इको-फ्रेंडली मूर्तियों की बढ़ती लोकप्रियता
बीते कुछ वर्षों में गणेशोत्सव को पर्यावरण के अनुकूल बनाने पर जोर दिया गया है। मुंबई के एक कारीगर ने कागज से गणेश प्रतिमाएं बनाने की अनूठी पहल की है। ये मूर्तियां हल्की, टिकाऊ और आसानी से जल में घुल जाने वाली होती हैं। लगभग दो फुट की पारंपरिक मिट्टी की मूर्ति का वजन जहां 20 किलो होता है, वहीं उतनी ही ऊंचाई की कागज की मूर्ति केवल दो से तीन किलो की होती है। इससे इन्हें घर ले जाना और बाहर भेजना आसान हो जाता है। यही वजह है कि ये मूर्तियां देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो रही हैं।गणेश चतुर्थी की तैयारियां और रेल सेवाएं
गणेश चतुर्थी को लेकर पूरे महाराष्ट्र में उत्सव का माहौल है। नागपुर का ऐतिहासिक चितर ओली बाजार रंग-बिरंगे गणेश प्रतिमाओं से सज चुका है। कई पीढ़ियों से जुड़े कारीगर पूरी मेहनत से मूर्तियां बना रहे हैं। वहीं, भारतीय रेलवे ने भी त्योहार के दौरान यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए 21 अगस्त से 10 सितंबर तक 392 विशेष ट्रेन यात्राएं चलाने की घोषणा की है, ताकि लोगों को अपने घर और पूजा स्थलों तक पहुंचने में कोई परेशानी न हो।सरकार ने घोषित किया राज्य का उत्सव
इस साल महाराष्ट्र सरकार ने सार्वजनिक गणेशोत्सव को “महाराष्ट्र राज्य उत्सव” घोषित किया है। राज्य के संस्कृति मंत्री आशीष शेलार ने विधानसभा में बताया कि इस परंपरा की शुरुआत 1893 में लोकमान्य तिलक ने की थी। उन्होंने कहा कि यह पर्व सामाजिक, राष्ट्रीय, स्वतंत्रता, स्वाभिमान और भाषाई गौरव का प्रतीक है। आज भी यह उसी उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह इस उत्सव की सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक महत्व को और बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
