Supreme Court: सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की याचिका का किया विरोध, कहा- रिश्तों पर पड़ेगा असर

Supreme Court: सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की याचिका का किया विरोध, कहा- रिश्तों पर पड़ेगा असर

Supreme Court: केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को वैवाहिक दुष्कर्म को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया। इसमें सरकार ने कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म से जुड़े मामलों के देश में दूरगामी सामाजिक और कानूनी प्रभाव होंगे।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर किसी पति का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना दुष्कर्म के रूप में दंडनीय कर दिया गया, तो इससे दांपत्य जीवन पर गंभीर असर पड़ सकता है। सरकार ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने की मांग करने वाली कई याचिकाओं का विरोध करते हुए एक हलफनामा दायर किया है। शीर्ष कोर्ट इस मामले में तय करेगा कि क्या एक पति को अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने पर दंडित किया जा सकता है, अगर वह नाबालिग नहीं है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के एक विशेष नियम अपवाद-2 के अनुसार, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है, तो पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। नए कानून के तहत भी धारा 63 के अपवाद 2 में यह स्पष्ट किया गया है कि पति का पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना दुष्कर्म नहीं है। केंद्र ने हलफनामे में कहा कि यदि इस अपवाद को असंवैधानिक मानकर रद्द किया गया, तो इसका विवाह संस्था (शादी के रिश्ते) पर गहरा असर होगा। सरकार ने आगाह किया कि इसके दांपत्य जीवन में गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं और रिश्ते में भारी अस्थिरता आ सकती है। इसने कहा कि तेजी से बदले सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में नए प्रावधानों का दुरुपयोग भी संभव, क्योंकि यह साबित करना मुश्किल हो सकता है कि (यौन संबंध बनाने में) सहमति थी या नहीं। केंद्र ने कहा कि इस मुद्द पर सही फैसला लेने के लिए सभी राज्यों के साथ व्यापक चर्चा की जरूरत है, क्योंकि यह मामला समाज पर सीधा असर डाल सकता है। सरकारक ने यह भी स्पष्ट कहा कि विवाह में महिला की सहमति का उल्लंघन अवैध और दंडनीय होना चाहिए। लेकिन विवाह के भीतर इस तरह के उल्लंघनों के परिणाम बाहरी संबंधों से भिन्न होते हैं। 

केंद्र ने अदालत को बताया कि संसद ने विवाह के संबंध में सहमति की सुरक्षा के लिए विभिन्न उपाय किए हैं। अगर संसद मानती है कि विवाह संस्था के संरक्षण के लिए इस अपवाद को बनाए रखना जरूरी है, तो अदालत को इसे रद्द नहीं करना चाहिए। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में एक पीठ कर रही है। पीठ इस मुद्दे पर कई याचिकाओं पर विचार कर रही है।  


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